पपीता सबसे कम समय में फल देने वाला पौधा है इसलिए कोई भी इसे लगाना पसंद करता है. पपीता न केवल सरलता से उगाया जाने वाला फल है, बल्कि जल्दी लाभ देने वाला फल भी है.
खेत में पपीते का पौधा लगाने के लगभग सात महीने बाद से पपीते के फलों की तुड़वाई शुरू हो जाती है.
पपीते का एक पौधा डेढ़ से दो क्वीन्टल फल देता है.
पपीते का फल सात सौ ग्राम से लेकर दो या ढ़ाई किलो तक हो जाने पर तोड़ लिया जाता है.
पपीते के पौधें की एक बार बुआई करने के बाद यह लगातार चार से पांच साल तक फल देता है.
पपीते की बुुआई के लिए बीज का उपयोग कर सकते हैं.
बिजाई के लिए, नीचे से सुराख वाली ट्रे का इस्तेमाल करें. इसमें मिटटी रेत और कम्पोस्ट एक एक के अनुपात में बराबर मात्रा में होना चाहिए.
बीज से पौधा तैयार होने में आठ से बारह दिन का समय लगता है. उसके बाद इसको टेª से हटा कर लिफाफों में मिटी, रेत और खाद डाल कर लगाएं.
पपीते की खेती के लिए जलवायु
पपीते की अच्छी खेती गर्म नमी युक्त जलवायु में की जा सकती है. इसे अधिकतम 38 डिग्री सेल्सियस 44 डिग्री सेल्सियस तक तापमान होने पर उगाया जा सकता है.
न्यूनतम 5 डिग्री सेल्सियस से कम नहीं होना चाहिए.
लू तथा पाले से पपीते को बहुत नुकसान होता है.
इनसे बचने के लिए खेत के उत्तरी पश्चिम में हवा रोधक वृक्ष लगाना चाहिए पाला पडने की आशंका हो तो खेत में रात्रि के अंतिम पहर में धुंआ करके एवं सिंचाई भी करते रहना चाहिए.
पपीते की खेती के लिए भूमि
जमीन उपजाऊ हो तथा जिसमें जल निकास अच्छा हो तो पपीते की खेती उत्तम होती है. जिस खेत में पानी भरा हो उस खेत में पपीता कदापि नही लगाना चाहिए. क्योकि पानी भरे रहने से पोधे में कॉलर रॉट बिमारी लगने की संभावना रहती है. अधिक गहरी मिट्टी में भी पपीते की खेती नही करना चाहिए.
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बुआई से पहले जमीन की तैयारी
खेतों में पपीते का पौधा लगाने से एक महीना पहले ही जमीन को तैयार कर लेना चाहिए.
खेत को अच्छी तरह जोंत कर समतल बनाना चाहिए तथा भूमि का हल्का ढाल उत्तम होता है.
पौधा लगाने के लिए 50 सेंटीमीटर लम्बाई और 50 सेंटीमीटर चैड़ाई तथा 50 सेंटीमीटर गहरा खड्डे बना लें.
इस गड्ढे को गोबर खाद और दूसरी खादों से भर दें.
जैसे ऊपर बताया गया है कि हर रोज थोड़ा थोड़ा पानी गड्ढे मैं डालते रहें जब तक पपीता नहीं लगते और छह पत्ते नहीं निकल जाते है.
पपीते के पौधे पहले रोपणी में तैयार किये जाते है, पौधें पहले से तैयार किये गए गड्ढे में जून-जुलाई में लगाना चाहिए.
जंहा सिंचाई का समूचित प्रबंध हो वंहा सितम्बर से अक्टूबर तथा फरवरी माह से मार्च माह तक पपीते के पौधे लगाये जा सकते है.
नर्सरी में पौधे तैयार करना
इस विधि द्वारा बीज पहले भूमि की सतह से 15 सेंटीमीटर से 20 सेंटीमीटर ऊंची क्यारियों में कतार से कतार की दूरी 10 सेंटीमीटर तथा बीज की दूरी 3 से 4 सेंटीमीटर रखते हुए लगाते है.
बीज को 3 सेंटीमीटर से अधिक गहराई पर नहीं बोना चाहिए. जब पौधे करीब 20 सेंटीमीटर से 25 सेंटीमीटर बड़े हो जाएं तब उन्हें दो-दो करके प्रति गड्ढा लगाना चाहिए.
पोलीथीन की थैली में पौधे तैयार करने की विधि
20 सेंटीमीटर चैड़े मुंह वाली, 25 सेंटीमीटर लम्बी तथा 150 सेंटीमीटर छेद वाले पोलीथीन की थैलियां लें और इन थैलियों में गोबर की खाद, मिट्टी एवं रेत का समिश्रण भर दें.
थैली को ऊपर से थोड़ा खाली रखना चाहिए. प्रति थैली 2 से 3 बीज बोना चाहिए. पोलीथीन में नमी बनी रहनी चाहिए.
जब पौधे 15 से 20 सेंटीमीटर बड़े हो जाएं तब उन्हें पोलीथीन से निकाल कर खेतों में तैयार किये गये गड्ढों में लगाना चाहिए.
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नर तथा मादा पौधों की पहचान
पपीते के पौधे 90 से 100 दिन के अन्दर फूलने लगते है तथा नर फूल छोटेछोटे गुच्छों में लम्बे डंढल युक्त होते है. नर पौधों पर पुष्प 1 से 1.3 मी. के लम्बे तने पर झूलते हुए तथा छोटे होते है.
मादा पुष्प पीले रंग के 2.5 सेंटीमीटर लम्बे तथा तने के नजदीक होते है.
खेतों की निंडाई गुडाई तथा सिंचाई
गर्मी के मौसम में 4 दिन से 7 दिन के अंतराल पर सिंचाई करना चाहिए. तथा ठण्ड के मौसम में 10 दिन से 15 दिनों के अंतर पर सिंचाई करना चाहिए.
पाले की चेतावनी मिलने पर खेतों में तुरंत सिंचाई करें.
खेतों में तीसरी सिंचाई के बाद निंदाई गुडाई करें. ध्यान रखें निड़ाई गुड़ाई के दौरान जड़ों तथा तने को नुकसान न हो.
पपीते के पौधों का संरक्षण
मक्खी जैसे कीटों का प्रकोप इन पर देखा गया है. इसके नियंत्रण को मेटासिस्टाक्स 1 लीटर दवा प्रति हेक्टर के दर से करना चाहिए.
दवा का दूसरा छिड़काव 15 दिन के अंतर पर करना चाहिए.
फूट एण्ड स्टेम राट बीमारी से पौधों को बचाने के लिए तने के आसपास पानी न जमने दें.
पौधें के जिस भाग में रोग लगा हो वहां चाकू से खुरच कर, बोडो पेस्ट भर देना चाहिए.
पावडरी मिलड्यू के नियंत्रण के लिए सल्फर डस्ट 30 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी के हिसाब से 15 दिन के अंतराल में छिड़काव करें.
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फलो को तोड़ना
पौधें लगाने के लगभग 9 माह बाद फल तोड़ने लायक हो जाते है. फलों का रंग गहरा हरे रंग से बदलकर हल्का पीला होने लगता है तथा फलों पर नाखुन लगने से दूध की जगह पानी तथा तरल निकलता हो तो समझना चाहिए कि फल पक गया है. फलो को सावधानी से तोड़ना चाहिए.
पपीता उगाने के लिए बीज दर
पपीते के पौधे बीज द्वारा तैयार किये जाते है, एक हेक्टेयर के लिए 500 ग्राम से एक किलो बीज की आवश्यकता होती है,
एक हेक्टेयर खेती में प्रति गढ्ढे 2 पौधे लगाने पर 5000 हजार पौधों की आवश्यकता होगी.
उपज तथा आर्थिक लाभ
पपीते की खेती से होने वाली अनुमानित इनकम की बात करें तो प्रति हेक्टर पपीते का उत्पादन 35.40 टन होता है. यदि 1500 रूपए टन भी कीमत आंकी जाएं तो प्रति हेक्टर 34000 रूपए का शुद्ध लाभ प्राप्त होता है.